श्रवण बाधित के प्रकार
जिन बालकों को सुनने में अत्यंत कठिनाई का सामना करना पड़ता है, वह श्रवण बाधित कहलाते हैं। इनमें ध्वनि को सुनने की क्षमता से 1 से 130 डेसीवल्स (Desibles) तक होती है। यदि वह 130 डी.बी. से ऊपर आये, तो यह ध्वनि दर्द की संवेदना देती है। श्रवण बाधित बालकों को चार वर्गों में बांटा जाता है -
1. कम श्रवण बाधित बालक - कम श्रवण बाधित बालक होते हैं, जिन्हें सामान्य स्तर पर बोलने पर सुनायी देता है, परंतु यदि बहुत धीमी बोला जाये, तो यह सुन नहीं पाते हैं। इनकी बातचीत को सामान्य स्तर 65 डी.बी. होता है। यह बालक किंचित श्रवण बाधित बालकों को 31 से 51 डी.बी. की श्रवण बाधिता एि हुए होते हैं। यानि कि यह बालक 54 डी.बी. तक की ध्वनि नहीं सुन पाते हैं, इसलिए इन्हें कम श्रवण बाधितों की श्रेणी में माना जाता है।
2. मंद श्रवण बाधित बालक - यह बालक मंद रूप से श्रवण बाधितों की श्रेणी में इसलिए आते हैं क्योंकि वह बालक 55 से 69 डी.बी. का क्षय रखते हैं। अत: सामान्य स्तर 65 डेसीवल्स पर यह नहीं सुन पाते हैं। अत: यह बालक ऊंचा सूनते हैं।
3. गंभीर श्रवण बाधित बालक - इन बालकों में 70-89 डी.बी. तक की श्रवण बाधिता होती है तथा वे बालक काफी ऊंचा सुनते हैं।
4. पूर्ण बाधित बालक - यह बालक बिल्कुल नहीं सुन पाते हैं। इसकी श्रवण बाधिता 90 डी.बी. तथा इससे आगे के स्तर की जोती है। यह बहुत ऊंचा बोलने पर थोड़ा - सा ही सुन पाते हैं। यह बालक बधिर (Deaf) की श्रेणी में आते हैं।
श्रवण प्रक्रिया
व्यक्ति विशेष की वैसी अक्षमता जो उस व्यक्ति में सुनने की बाधा उत्पन्न करती है। श्रवण अक्षमता कहलाती है। इसमें श्रवण-बाधित व्यक्ति अपनी श्रवण शक्ति को अंशत: या पूर्णत: गंवा देता है तथा उसे सांकेतिक भाषा पर निर्भर रहना पड़ता है। श्रवण अक्षमता को सही तरीके से समझने के लिए यह आवश्यक है कि सर्वप्रथम श्रवण प्रक्रिया (Hearing procedure) को समझने का प्रयास किया जाये कि वास्तव में श्रवण प्रक्रिया किस प्रकार संचलित होती है। श्रवण प्रक्रिया कई चरणों में होकर सम्पन्न होती है जो कि है -
श्रवण प्रक्रिया में कान के द्वारा आवाज को ग्रहण करना और संदेश को केन्द्रीय तांत्रिका तंत्र (सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम) में भेजना सम्मिलित है। श्रवण प्रक्रिया से लोग अपने आस-पास के वातावरण से संबंध रखते हैं। जो भाषा को सीखने का एक प्रमुख मार्ग हे। श्रवण हमें खतरों से भी सावधान करता है। जन्म से लेकर जीवनपर्यन्त श्रवण प्रक्रिया हमें वातावरण पर नियंत्रण करने के लिए सहयता करती हैं।
श्रवण प्रक्रिया कई चरणों से होकर सम्पन्न होती है। इसमें सर्वप्रािम बाह्य वातावरण की ध्वनि कर्ण से टकराकर वाह्य कर्ण नलिका में प्रवेश करती है, जो कान के पर्दे के सम्पर्क में आकर विशेष प्रकार के तंतुओं से जुड़ी मध्य मर्ण की अस्थियों से टकराती है और आगे बढ़ती हुई, वहीं ध्वनि फेनेस्ट्रो ओवलिस में पहुंचती है। इससे स्कैला बेस्टीबुला में कम्पन्न होने लगता है।
इस कम्पन्न के फलस्वरूप कण। के अन्त: भाग के रिनर्स झिल्ली से होते हुए ध्वनि टेक्टोरियस झिल्ली मे पहुंचती है, जिससे हलचल उत्पन्न होती है। यह झिल्ली हलचल को समायोजित करके ध्वनि को आगे की तरफ प्रेषित करती है। इसे काटांई नामक अंग ग्रहण करके 8वीं श्रवण तंत्रिका में भेज देता है। श्रवण तंत्रिका उपयुक्त ध्वनि को मस्तिष्क में भेज देती है, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति को ध्वनि का प्रत्यक्षण होता है। इस सम्पूर्ण श्रवण प्रक्रिया को दिये गये निम्नलिखित सूत्र एवं चित्र द्वारा आसानी से समझा जा सकता है।
श्रवण दोष बच्चे की वाक् उत्तेजना में बाधा डालता है। जबकि भाषा - विकास के लिए सामान्य श्रवण का होना आवश्यक होता है। श्रवण दोष का अंश जो एक सामान्य बुद्धि वाले व्यक्ति में समस्या नहीं उत्पन्न करता, वहीं मानसिक मंद बच्चे में बड़ी समस्या खड़ी कर सकता है। डाउन सिड्रोम से ग्रसित अधिकांश बच्चों में श्रवण दोष और कान के संक्रामक रोग देखे गये हैं।
सुनना
श्रवण प्रक्रिया और सुनना एक ही प्रक्रियाएं नहीं है। सुनना एक श्रवण प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य अर्थ निकलना है या शब्दों के अर्थ देने के उद्देश्य से शब्द ग्रहण करना होता है। इसमें मुख्य रूप से सम्मिलित प्रक्रिया है। इसकी तुलना में श्रवण प्रक्रिया एक शारीरिक क्रिया है।
श्रवण दोष
श्रवण दोष के तात्पर्य सुनने की अक्षमता है। श्रवण दोष व्यक्ति में दूसरों की बात और वातावरण की अन्य ध्वनियों को सुनने में कठिनाई उत्पन्न होती है।
श्रवण क्षतियुक्तता के कारण -
बालकों के विकास को जन्म से पूर्व, जन्म के समय तथा जन्म के पश्चात् विभिन्न कारक प्रभावित करते हैं श्रवण क्षतियुक्तता के कारण हैं -
श्रवण क्षतियुक्तता के कारण
जन्म से पूर्व, जन्म के समयजन्म के पश्चात्जाननिक कारण बीमारीजर्मन खसरा दुर्घटनागर्भावस्था में श्रवण शक्ति उच्च ध्वनिअसामयिक प्रसवआयुअसुरक्षित प्रसवअसंतुलित आहार
जाननिक कारण
आनुवंशिकता श्रवण संबंधित दोषों का प्रमुख कारण है। साधारणतया यह देखा गया है कि जिन बालाकों के माता-पिता बहरे होते हैं उन्हें श्रवण दोष देखने को मिलता है। यदि अत्यंत निकट संबंधी आपस में विवाह करते हैं तब इस तरह के दोष की संभावना रहती है। जन्मजात श्रवण दोष का कारण जाननिक तब भी सकता है जब माता-पिता और अन्य भाई बहनों में यह दोष न हो क्योंकि यहां श्रवण दोष का कारण माँ या पिता या दोनों में विद्यमान जीन्स हो सकते हैं। श्रवण दोष जीन्स की विशेषताओं के कारण होती है :
1. माता और पिता दोनों में विद्यमान एक अपगामी जीन्स
2. माता और पिता दोनों में से किसी में विद्यमान प्रबल जीन्स
3. लिंग संबंधी जीन्स जो केवल माँ में होता है और केवल पुत्र को प्रभावित करता है।
जर्मन खसरा
1980 में जर्मन खसरा एक महामारी के रूप में फैला यह देखा गया कि जो गर्भवती माताएं इस बीमारी से पीड़ित हुई उनकी सन्तानें श्रवण क्षतियुक्त हुई। तब यह निष्कर्ष निकाला गया है कि जर्मन खसरा भी श्रवण विकलांगता का एक कारण है।
गर्भावस्था में क्षतियुक्तता
जब बालक गर्भ में होता है तब उस समय श्रवण दोष होने की संभावना होती है। इसके कारण हो सकते हैं -
1. माँ कोई जहरीले पदार्थ का सेवन कर ले।
2. शराब का सवेन करें।
3. असंतुलित भोजन ग्रहण करें।
4. दूषित भोजन करें।
5. बीमार रहे।
असामयिक प्रसव
असामयिक प्रसव की श्रवण दोष उत्पन्न करता है हालांकि यह अभी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है। कभी-कभी इससे उत्पन्न बालक में श्रवण दोष दिखाई पड़ता है।
असुरक्षित प्रसव
यदि प्रसव के समय रक्त प्रवाह अधिक हो जाये या रक्त का विकृत संचार हो ऑक्सीजन का अभाव हो तो तब बालक के श्रवण यंत्र कुप्रभावित हो जाते हैं।
अधिकतर ऐसा देखते में आता है कि जन्म के समय बालक सामान्य होता है परंतु विकास के दौरान उसका श्रवण यंत्र प्रभावित हो जाता है जिसके कारण हो सकते हैं।
बीमारियां
कुछ बीमारियां इस प्रकार की जोती है जो कि कभी-कभी श्रवण दोष उत्पन्न करती हैं। जैसे -
1. कमफड़ा
2. खसरा,
3. चेचक,
4. मोतीझरा
5. कुकर खांसी
6. कान में मवाद।
दुर्घटना
कोई दुर्घटना भी व्यक्ति के श्रवण यंत्र को नुकसान पहुंचा सकती है। जिससे कि श्रवण दोष हो सकता है। किसी लकड़ी या पिन के काम का मेल निकालते समय भी बालक अन्जाने में कर्ण पटल को नुकसान पहुंचा देते है। जिससे कभी-कभी श्रवण दोष हो सकता है।
उच्च ध्वनि
कभी-कभी जोर से धमाका कर्ण पटल को फाड़ देता है। इसी प्रकार निरंतर उच्च ध्वनि को सुनते रहने से कान केवल उच्च ध्वनि को ही पकड़ पाते हैं। सामान्य ध्वनि धीमी गति से बोले गये शब्द वह भली प्रकार से नहीं सुन पाते हैं। इस प्रकार उच्च ध्वनि भी श्रवण दोष उत्पन्न करती है।
आयु
(4) वृद्धावस्था में शारीरिक तंत्र कमजोर पड़ने लगते हैं अत: सुनाई कम पड़ने लगता है। अत: उम्र के साथ-साथ व्यक्ति का श्रवण यंत्र प्रभावित होता जाता है।
संतुलित आहार
यदि बालक को संतुलित आहार नहीं मिलता तब उसकी श्रवण शक्ति ऋणात्मक रूप से प्रभावित होती हे। इस कारण यह है कि बालक के श्रवण यंत्र के कोमल तंतुओं को जिंदा रहने व विकास करने के लिए ऊर्जा नहीं मिलती है।
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जिन बालकों को सुनने में अत्यंत कठिनाई का सामना करना पड़ता है, वह श्रवण बाधित कहलाते हैं। इनमें ध्वनि को सुनने की क्षमता से 1 से 130 डेसीवल्स (Desibles) तक होती है। यदि वह 130 डी.बी. से ऊपर आये, तो यह ध्वनि दर्द की संवेदना देती है। श्रवण बाधित बालकों को चार वर्गों में बांटा जाता है -
1. कम श्रवण बाधित बालक - कम श्रवण बाधित बालक होते हैं, जिन्हें सामान्य स्तर पर बोलने पर सुनायी देता है, परंतु यदि बहुत धीमी बोला जाये, तो यह सुन नहीं पाते हैं। इनकी बातचीत को सामान्य स्तर 65 डी.बी. होता है। यह बालक किंचित श्रवण बाधित बालकों को 31 से 51 डी.बी. की श्रवण बाधिता एि हुए होते हैं। यानि कि यह बालक 54 डी.बी. तक की ध्वनि नहीं सुन पाते हैं, इसलिए इन्हें कम श्रवण बाधितों की श्रेणी में माना जाता है।
2. मंद श्रवण बाधित बालक - यह बालक मंद रूप से श्रवण बाधितों की श्रेणी में इसलिए आते हैं क्योंकि वह बालक 55 से 69 डी.बी. का क्षय रखते हैं। अत: सामान्य स्तर 65 डेसीवल्स पर यह नहीं सुन पाते हैं। अत: यह बालक ऊंचा सूनते हैं।
3. गंभीर श्रवण बाधित बालक - इन बालकों में 70-89 डी.बी. तक की श्रवण बाधिता होती है तथा वे बालक काफी ऊंचा सुनते हैं।
4. पूर्ण बाधित बालक - यह बालक बिल्कुल नहीं सुन पाते हैं। इसकी श्रवण बाधिता 90 डी.बी. तथा इससे आगे के स्तर की जोती है। यह बहुत ऊंचा बोलने पर थोड़ा - सा ही सुन पाते हैं। यह बालक बधिर (Deaf) की श्रेणी में आते हैं।
श्रवण प्रक्रिया
व्यक्ति विशेष की वैसी अक्षमता जो उस व्यक्ति में सुनने की बाधा उत्पन्न करती है। श्रवण अक्षमता कहलाती है। इसमें श्रवण-बाधित व्यक्ति अपनी श्रवण शक्ति को अंशत: या पूर्णत: गंवा देता है तथा उसे सांकेतिक भाषा पर निर्भर रहना पड़ता है। श्रवण अक्षमता को सही तरीके से समझने के लिए यह आवश्यक है कि सर्वप्रथम श्रवण प्रक्रिया (Hearing procedure) को समझने का प्रयास किया जाये कि वास्तव में श्रवण प्रक्रिया किस प्रकार संचलित होती है। श्रवण प्रक्रिया कई चरणों में होकर सम्पन्न होती है जो कि है -
श्रवण प्रक्रिया में कान के द्वारा आवाज को ग्रहण करना और संदेश को केन्द्रीय तांत्रिका तंत्र (सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम) में भेजना सम्मिलित है। श्रवण प्रक्रिया से लोग अपने आस-पास के वातावरण से संबंध रखते हैं। जो भाषा को सीखने का एक प्रमुख मार्ग हे। श्रवण हमें खतरों से भी सावधान करता है। जन्म से लेकर जीवनपर्यन्त श्रवण प्रक्रिया हमें वातावरण पर नियंत्रण करने के लिए सहयता करती हैं।
श्रवण प्रक्रिया कई चरणों से होकर सम्पन्न होती है। इसमें सर्वप्रािम बाह्य वातावरण की ध्वनि कर्ण से टकराकर वाह्य कर्ण नलिका में प्रवेश करती है, जो कान के पर्दे के सम्पर्क में आकर विशेष प्रकार के तंतुओं से जुड़ी मध्य मर्ण की अस्थियों से टकराती है और आगे बढ़ती हुई, वहीं ध्वनि फेनेस्ट्रो ओवलिस में पहुंचती है। इससे स्कैला बेस्टीबुला में कम्पन्न होने लगता है।
इस कम्पन्न के फलस्वरूप कण। के अन्त: भाग के रिनर्स झिल्ली से होते हुए ध्वनि टेक्टोरियस झिल्ली मे पहुंचती है, जिससे हलचल उत्पन्न होती है। यह झिल्ली हलचल को समायोजित करके ध्वनि को आगे की तरफ प्रेषित करती है। इसे काटांई नामक अंग ग्रहण करके 8वीं श्रवण तंत्रिका में भेज देता है। श्रवण तंत्रिका उपयुक्त ध्वनि को मस्तिष्क में भेज देती है, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति को ध्वनि का प्रत्यक्षण होता है। इस सम्पूर्ण श्रवण प्रक्रिया को दिये गये निम्नलिखित सूत्र एवं चित्र द्वारा आसानी से समझा जा सकता है।
श्रवण दोष बच्चे की वाक् उत्तेजना में बाधा डालता है। जबकि भाषा - विकास के लिए सामान्य श्रवण का होना आवश्यक होता है। श्रवण दोष का अंश जो एक सामान्य बुद्धि वाले व्यक्ति में समस्या नहीं उत्पन्न करता, वहीं मानसिक मंद बच्चे में बड़ी समस्या खड़ी कर सकता है। डाउन सिड्रोम से ग्रसित अधिकांश बच्चों में श्रवण दोष और कान के संक्रामक रोग देखे गये हैं।
सुनना
श्रवण प्रक्रिया और सुनना एक ही प्रक्रियाएं नहीं है। सुनना एक श्रवण प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य अर्थ निकलना है या शब्दों के अर्थ देने के उद्देश्य से शब्द ग्रहण करना होता है। इसमें मुख्य रूप से सम्मिलित प्रक्रिया है। इसकी तुलना में श्रवण प्रक्रिया एक शारीरिक क्रिया है।
श्रवण दोष
श्रवण दोष के तात्पर्य सुनने की अक्षमता है। श्रवण दोष व्यक्ति में दूसरों की बात और वातावरण की अन्य ध्वनियों को सुनने में कठिनाई उत्पन्न होती है।
श्रवण क्षतियुक्तता के कारण -
बालकों के विकास को जन्म से पूर्व, जन्म के समय तथा जन्म के पश्चात् विभिन्न कारक प्रभावित करते हैं श्रवण क्षतियुक्तता के कारण हैं -
श्रवण क्षतियुक्तता के कारण
जन्म से पूर्व, जन्म के समयजन्म के पश्चात्जाननिक कारण बीमारीजर्मन खसरा दुर्घटनागर्भावस्था में श्रवण शक्ति उच्च ध्वनिअसामयिक प्रसवआयुअसुरक्षित प्रसवअसंतुलित आहार
जाननिक कारण
आनुवंशिकता श्रवण संबंधित दोषों का प्रमुख कारण है। साधारणतया यह देखा गया है कि जिन बालाकों के माता-पिता बहरे होते हैं उन्हें श्रवण दोष देखने को मिलता है। यदि अत्यंत निकट संबंधी आपस में विवाह करते हैं तब इस तरह के दोष की संभावना रहती है। जन्मजात श्रवण दोष का कारण जाननिक तब भी सकता है जब माता-पिता और अन्य भाई बहनों में यह दोष न हो क्योंकि यहां श्रवण दोष का कारण माँ या पिता या दोनों में विद्यमान जीन्स हो सकते हैं। श्रवण दोष जीन्स की विशेषताओं के कारण होती है :
1. माता और पिता दोनों में विद्यमान एक अपगामी जीन्स
2. माता और पिता दोनों में से किसी में विद्यमान प्रबल जीन्स
3. लिंग संबंधी जीन्स जो केवल माँ में होता है और केवल पुत्र को प्रभावित करता है।
जर्मन खसरा
1980 में जर्मन खसरा एक महामारी के रूप में फैला यह देखा गया कि जो गर्भवती माताएं इस बीमारी से पीड़ित हुई उनकी सन्तानें श्रवण क्षतियुक्त हुई। तब यह निष्कर्ष निकाला गया है कि जर्मन खसरा भी श्रवण विकलांगता का एक कारण है।
गर्भावस्था में क्षतियुक्तता
जब बालक गर्भ में होता है तब उस समय श्रवण दोष होने की संभावना होती है। इसके कारण हो सकते हैं -
1. माँ कोई जहरीले पदार्थ का सेवन कर ले।
2. शराब का सवेन करें।
3. असंतुलित भोजन ग्रहण करें।
4. दूषित भोजन करें।
5. बीमार रहे।
असामयिक प्रसव
असामयिक प्रसव की श्रवण दोष उत्पन्न करता है हालांकि यह अभी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है। कभी-कभी इससे उत्पन्न बालक में श्रवण दोष दिखाई पड़ता है।
असुरक्षित प्रसव
यदि प्रसव के समय रक्त प्रवाह अधिक हो जाये या रक्त का विकृत संचार हो ऑक्सीजन का अभाव हो तो तब बालक के श्रवण यंत्र कुप्रभावित हो जाते हैं।
अधिकतर ऐसा देखते में आता है कि जन्म के समय बालक सामान्य होता है परंतु विकास के दौरान उसका श्रवण यंत्र प्रभावित हो जाता है जिसके कारण हो सकते हैं।
बीमारियां
कुछ बीमारियां इस प्रकार की जोती है जो कि कभी-कभी श्रवण दोष उत्पन्न करती हैं। जैसे -
1. कमफड़ा
2. खसरा,
3. चेचक,
4. मोतीझरा
5. कुकर खांसी
6. कान में मवाद।
दुर्घटना
कोई दुर्घटना भी व्यक्ति के श्रवण यंत्र को नुकसान पहुंचा सकती है। जिससे कि श्रवण दोष हो सकता है। किसी लकड़ी या पिन के काम का मेल निकालते समय भी बालक अन्जाने में कर्ण पटल को नुकसान पहुंचा देते है। जिससे कभी-कभी श्रवण दोष हो सकता है।
उच्च ध्वनि
कभी-कभी जोर से धमाका कर्ण पटल को फाड़ देता है। इसी प्रकार निरंतर उच्च ध्वनि को सुनते रहने से कान केवल उच्च ध्वनि को ही पकड़ पाते हैं। सामान्य ध्वनि धीमी गति से बोले गये शब्द वह भली प्रकार से नहीं सुन पाते हैं। इस प्रकार उच्च ध्वनि भी श्रवण दोष उत्पन्न करती है।
आयु
(4) वृद्धावस्था में शारीरिक तंत्र कमजोर पड़ने लगते हैं अत: सुनाई कम पड़ने लगता है। अत: उम्र के साथ-साथ व्यक्ति का श्रवण यंत्र प्रभावित होता जाता है।
संतुलित आहार
यदि बालक को संतुलित आहार नहीं मिलता तब उसकी श्रवण शक्ति ऋणात्मक रूप से प्रभावित होती हे। इस कारण यह है कि बालक के श्रवण यंत्र के कोमल तंतुओं को जिंदा रहने व विकास करने के लिए ऊर्जा नहीं मिलती है।
दोस्तों आपको यह आर्टिकल कैसा लगा हमें जरुर बताये. आप अपनी राय, सवाल और सुझाव हमें comments के जरिये जरुर भेजे. अगर आपको यह आर्टिकल उपयोगी लगा हो तो कृपया इसे share करे।
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